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30 July 2015

खामोशी ......

इस शोर में भी
कहीं सुनाई देती है
अजीब सी
खामोशी
जो अनकहे ही
कह देती है
बहुत कुछ
जो कहीं छुपा सा है
इस भीड़ में
कहीं दबा सा है
आ जाता है
सामने 
जब खामोशी
खोल देती है
अपनी जुबां
बहते सैलाब के साथ।

~यशवन्त यश©

1 comment:

  1. वाह बहुत ही सुन्दर और जीवन्त भाव लिए हुई है आपकी कविता।
    स्वयं शून्य

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