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19 June 2014

क्या होगा उसका धरती के बिन........?

(चित्र:गूगल के सौजन्य से )
बरसों था जो हरा भरा
आज वो सूखा पेड़
पतझड़ मे छोड़ चली
सूखी पत्तियों को
नीचे बिखरा देख
पल पल गिन रहा है दिन
क्या होगा उसका
धरती के बिन.......?

धरती -
जिसने आश्रय दे कर
हो कर खड़े
जीना सिखलाया
धूप- छांव -तूफान झेल कर  
रहना अड़े
उसने बतलाया .....
भूकंपों से निडर बनाकर
फूलों की खुशबू बिखरा कर
हिल डुल हवा के झोंको से
देता जीवन
जो पलछिन ...
क्या होगा उसका
धरती के बिन........?

बन कर अवशेष
कहीं जलना होगा
या रूप बदल कर
सजना होगा
आरों की धार पर
चल-फिर कर
कीलों से ठुक-पिट
कहीं जुड़ना होगा

देखो....
जो भी होना होगा 
पर उन साँसों का क्या होगा
जिन्हें जवानी में दे कर  
अब देख रहा वो ऐसे दिन
बरसों था जो हरा भरा
क्या होगा उसका
धरती के बिन........?

~यशवन्त यश©

11 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति बहुत खूब !

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  2. बहुत सुन्दर कविता यश जी. हमें अब भी जाग जाना होगा।

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  3. Beautiful work yashwant ji

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  4. बहुत सुंदर

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  5. बहुत अच्छी लगी आपकी रचना और उसके पीछे की सोच.

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  6. बहुत अच्छी लगी आपकी रचना और उसके पीछे की सोच.

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  7. अर्थपूर्ण रचना ! बधाई !

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  8. धरा तो आधार है. उसके बिना तो सब निराधार ही होते हैं! सुन्दर अभिव्यक्ति!
    सादर
    मधुरेश

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