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22 February 2013

अनकही बातें

अनकही बातें
खामोश सी बातें
कभी कभी उतावली होती हैं
भीतर से
बाहर आने को
दबी हुई कह जाने को
पर अनकही
अनकही ही रह जाती है
कभी साँसों के उखड़ने की
मजबूरी में
और कभी
इस उम्मीद में
कि
समझने वाले ने
झांक ही लिया होगा
मन के भीतर।
©यशवन्त माथुर©

9 comments:

  1. अक्सर यह गलत फहमी ..दुखों का भी बायस बन जाती है ...है न

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  2. उम्मीद में ज़्यादातर रह जाती हैं अनकही बातें ...

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  3. बहुत सुन्दर वहा वहा क्या बात है अद्भुत, सार्थक प्रस्तुरी
    मेरी नई रचना
    खुशबू
    प्रेमविरह

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  4. यशवंत भाई बहुत सुन्दर :) | बधाई

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  5. इस उम्मीद में
    किसमझने वाले ने
    झांक ही लिया होगा
    मन के भीतर। इसी से तो गलतफहमी आ जाती है..
    भावपूर्ण रचना...

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  6. इसी एहसास के चलते हम समय पर कुछ कह नहीं पाते

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  7. sahi kaha apne....ankahi ankahi hi reh jati hai....nahi samajh pata koi..

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  8. ठीक कहा है ... इसलिए कह देना चाहिए जो मन में है ...

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