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02 January 2013

क्षणिका.....

सोच रहा हूँ
ख्वाबों के दल दल से
बाहर आ कर
काल्पनिक दुनिया के
पार आ कर
चुभीली सच्चाई से
हाथ मिला कर
अब कर ही लूँ दोस्ती
वक़्त की
उठती गिरती
लहरों से ।

©यशवन्त माथुर©

12 comments:

  1. सच्चाई का तो सामना करना ही होगा..मन की दुविधा दर्शाती सुन्दर भाव.... नव वर्ष की हार्दिक बधाई.शुभकामनाएं यशवन्त..

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  2. बहुत सुन्दर..

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  3. वक़्त को अपना दोस्त बना ही ले.. सुंदर नववर्ष मगल्मय हो

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  4. बढ़िया | सच का सामना जितना जल्दी हो जाए बढ़िया है |

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  5. बहुत जरुरी है जीवन की सच्चाइयों से हाथ मिलाकर चलना... सकारात्मक सोच लिए बहुत सुन्दर रचना.... शुभकामनायें

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  6. बहुत ही अच्छा ....!! लेकिन आप से संभव है ...... ?? शुभकामनायें !!

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  7. सुन्दर ख़याल.....

    सस्नेह
    अनु

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  8. चुभती भी हैं, और आप दोस्ती भी करना चाहते हैं! बड़े हिम्मत की बात है।
    शुभकामनाएँ आपको भी! :)
    सादर
    मधुरेश

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  9. यशवंत माथुर जी इतना आसान नहीं चलते चलते दर्द से दोस्ती करना .....

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  10. वाह ..सटीक भाव के साथ लाजवाब क्षणिका ..

    यहाँ पर आपका इंतजार रहेगा शहरे-हवस

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  11. On e-mail-by
    indira mukhopadhyay


    Waqt ka takaza bhi hai, bahut khub Yashwantji. Naye saal ki shumkamnayen aur dersa ashirwad.

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