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20 September 2012

घास

 













मैदानों में
ढलानों में
घर के लानों में
खेत-खलिहानों में
बागानों में
सड़कों के किनारों में
कवि के विचारों में
बारिश की रिमझिम फुहारों में
धरती का मखमली
गुदगुदा बिस्तर बनने का सुख
घास को हासिल है

घास
आस है
विश्वास है
दर्शन है
उपहास -परिहास है

घास
स्वाभिमान है -

तूफानों में
खुद को झुका लेती है
हो जाती है नत-मस्तक
छद्म -क्षणिक प्रभुत्व के आगे
और बाद की शांति में  
हो जाती है
पूर्व  की तरह अडिग
उठा लेती है खुद को

घास
निडरता का
प्रत्यक्ष प्रतीक
बन कर 
खोद कर
उखाड़ कर
फेंक दिये जाने पर भी
धरती के भीतर
छोड़ देती है
अपना अंश

हो उठती है
पुनः जीवंत
महलों के चमकते
फर्श के किनारों पर 
मौका पाते ही

घास
सिर्फ घास ही नहीं
गीता में लिखा 
जीवन का मर्म है
जिसका उद्देश्य
निरंतर कर्म है।

 ©यशवन्त माथुर©

29 comments:

  1. घास
    सिर्फ घास ही नहीं
    गीता में लिखा
    जीवन का मर्म है
    जिसका उद्देश्य
    निरंतर कर्म है।
    ..सच प्रकृति में कितना कुछ है सीखने-देखने को बस सबकुछ हम इंसान देख नहीं पाते! समझ नहीं पाते!...
    बहुत बढ़िया

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  2. बहुत बढ़िया प्रस्तुति |
    बधाई स्वीकारें ||

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    Replies
    1. रविकर जी यह तो इसे बचपन से बताया-सिखाया था ,आज इसने काव्यात्मक रूप से सार्वजनिक कर दिया। आपको पसंद आया धन्यवाद। फतह-जीत हासिल करने का नुस्खा है इस 'घास-दर्शन' मे।

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  3. बढ़िया बढ़िया बहुत ही बढ़िया.....
    सच्ची यशवंत बहुत सुन्दर रचना....
    सहज सी चीज़..सहज शब्दों में गहन अभिव्यक्ति...
    सस्नेह
    अनु

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  4. विनम्रता से झुकना भी सिखाती है ये नन्ही-नन्ही घास... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....

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  5. namaskaar yashwant ji bahut sundar abhivyakti aur madhur sangeet ke saath aur bhu=i sundar karn priye ho gayi , anand aa gaya blog par aakar .........purane sangeet ka anand bhi sirf aapke blogs par hi milta hai

    ReplyDelete
  6. घास
    सिर्फ घास ही नहीं
    गीता में लिखा
    जीवन का मर्म है
    जिसका उद्देश्य
    निरंतर कर्म है।

    बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति,,,यशवंत जी,,,,बधाई,,,

    RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का

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  7. विनम्रता हमेशा झुकना ही सिखलाती है...बहुत सशक्त और सार्थक अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर..

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  8. घास
    सिर्फ घास ही नहीं
    गीता में लिखा
    जीवन का मर्म है
    जिसका उद्देश्य
    निरंतर कर्म है।
    आपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है ....
    घास से गीता में लिखा
    जीवन का मर्म दिए सिखा .... :))

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  9. हो उठती है
    पुनः जीवंत
    महलों के चमकते
    फर्श के किनारों पर
    मौका पाते ही

    घास
    सिर्फ घास ही नहीं
    गीता में लिखा
    जीवन का मर्म है
    जिसका उद्देश्य
    निरंतर कर्म है।

    जीवन की सुन्दर व्याख्या अनोखा प्रतिक सुन्दर सुन्दर अति सुन्दर

    ReplyDelete
  10. बहुत बढ़िया प्रस्तुति |

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  11. घास के कर्म को, घास के मर्म को
    कभी इस तरह से नहीं देखा..
    ना कभी इस बारे में सोचा था..
    आपकी नजर से देखा तो बहुत कुछ जाना की छोटी से छोटी जीज़ भी बहुत महत्वपूर्ण होती है...
    बधाई आपको, आपकी दूरदृष्टि को ,,
    और आपके मॉम ,डैड को भी..
    :-) :-) :-)

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  12. सहज शब्दों में गहन अभिव्यक्ति|

    ReplyDelete
  13. हो उठती है
    पुनः जीवंत
    महलों के चमकते
    फर्श के किनारों पर
    मौका पाते ही

    सुंदर बिम्ब ....बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
  14. बहुत सुन्दर अनुभूति, ' घास '
    सिर्फ घास ही नहीं
    जीवन का मर्म है
    जिसका उद्देश्य
    निरंतर कर्म है।
    नए बिम्ब, नयापन बेहद पसंद आया....

    ReplyDelete
  15. यशवंत बहुत सुन्दर रचना, बेहतरीन

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  16. घास
    आस है
    विश्वास है
    दर्शन है
    उपहास -परिहास है

    ....बहुत गहन अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर..

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  17. घास सच ही जीवन दर्शन है ..... बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  18. बहुत बहुत बहुत ही.... सुंदर अभिव्यक्ति !:)

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  19. खुबसूरत प्रस्तुति.....!!

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  20. blogjagat me nya hoon margdarshan kare bhai ji

    raj
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in

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  21. घास के सहारे आपने बड़ी बात कही है

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  22. बहुत सुन्दर !

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  23. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 26/09/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  24. घास
    सिर्फ घास ही नहीं
    गीता में लिखा
    जीवन का मर्म है
    जिसका उद्देश्य
    निरंतर कर्म है।

    bahut sundarata se kahii man ki baat ...!!
    shubhkamnayen .

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  25. घास के माध्यम से सुंदर जीवन दर्शन.

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  26. दोस्त गहरा दर्शन लिए है "घास "इसीलिए मुहावरों में भी जीवित है घास ,"घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या ".घास खोदना भी मुहावरा है भाई साहब -हाँ मैं तो यहाँ बस घास खोद रहा हूँ जैसे घास खोदना कोई कर्म ही न हो अप कर्म हो .भले यू पी ए २ भी यही काम कर रही हो .पर काम करते दिखती तो है .

    घास पर्यावरण की सेहत हरियाली ,कुदरत के हरे बिछौने ,पृथ्वी के हरे बिछौने (वेजिटेशन कवर ) ,पेड़ पौधों हरियाली ,जंगलात का भी प्रतीक है व्यापक अर्थों में .

    हाड ज़रे ज्यों लाकरी ,केस ज़रें ज्यों घास ,

    सग जग जरता देखि के ,भया कबीर उदास .

    शब्द कृपणता ठीक नहीं ब्लॉग जगत में को आपने स्थान दिया हलचल में शुक्रिया तहे दिल से .

    वीरुभाई ,४३,३०९ ,सिल्वरवुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ४८ १८८ यू एस ए

    ReplyDelete
  27. सहा शब्दों के माध्यम से बेहतरीन प्रस्तुति |
    मेरी नई पोस्ट:-
    ♥♥*चाहो मुझे इतना*♥♥

    ReplyDelete
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