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10 September 2011

उड़ना चाहती हूँ

[कभी कभी कुछ चित्रों को देख कर बहुत कुछ मन मे आता है इस चित्र को देख कर जो मन मे आया वह प्रस्तुत है। यह चित्र अनुमति लेकर सुषमा आहुति जी की फेसबुक वॉल से लिया है] 

 
(1)
किसी आज़ाद पंछी की तरह
पंखों को फैला कर
मैं उड़ना चाहती हूँ
मुक्त आकाश मे।
(2)
समुंदर की लहरों की तरह
उछृंखल हो कर
वक़्त के प्रतिबिंब को
खुद मे समे कर
जीवन की नाव पर
हो कर सवार
मैं बढ़ना चाहती हूँ
खुद की तलाश मे।

31 comments:

  1. kab kahan se bhawnaaon ke jwaar uthen shabdon kee ungli thaam len ...kaun janta hai , bahut sundar

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  2. बहुत सुंदर

    मैं बढना चाहती हूं
    खुद की तलाश में

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  3. बहुत ही सुन्दर ....

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  4. बहुत सुन्दर रचना ........ बेहतर प्रस्तुति

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  5. बहुत खुबसूरत चित्र के उतनी ही सुन्दर पंक्तिया....

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  6. भावनाओं को शब्दों में बखूबी पिरोया है आपने....

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  7. मैं बढना चाहती हूं
    खुद की तलाश में..खूबसूरत मनोभावो की सुन्दर प्रस्तुति....

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  8. मन भवन प्रस्तुति ...कभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  9. मैं बढ़ना चाहती हूँ
    खुद की तलाश मे।
    बहुत सुन्दर.....

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  10. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

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  11. pankho ko faila sakun, mile khula aakaash |
    jivan - nouka me simat, khud ki karun talaash ||

    HINDI TYPE me JUST kuchh PROB hai

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  12. मैं बढ़ना चाहती हूँ
    खुद की तलाश मे।

    ....बहुत खूब !

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  13. खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति....

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  14. मैं बढ़ना चाहती हूँ
    खुद की तलाश मे।

    सरल लेकिन प्रभावी अभिव्यक्ति.....

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  15. खूबसूरत ख्वाहिश!
    आशीष
    --
    मैंगो शेक!!!

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  16. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  17. सुन्दर उड़ान काव्य की

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  18. समुंदर की लहरों की तरह
    उछृंखल हो कर
    वक़्त के प्रतिबिंब को
    खुद मे समेट कर
    जीवन की नाव पर
    हो कर सवार

    मैं बढना चाहती हूं
    खुद की तलाश में.....चित्र को खूबसूरती से शब्दों में अभिव्यक्त किया आपने

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  19. खुद की तलाश ......खूबसूरत प्रस्तुति.

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  20. बहुत सुंदर.चित्र को शब्द चित्र में कुशलता से ढाला है.

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  21. खुद की तलाश....
    वाह! सुन्दर अभिव्यक्ति...
    सादर...

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  22. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  23. बहुत बढ़िया रचना सर |
    मेरे भी ब्लॉग में पधारें |
    मेरी कविता

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  24. चित्र को देख बहुत सुन्दर भाव मन में आए हैं ..खूबसूरत क्षणिकाएँ

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  25. अच्छा है...........काफी बदलाव सा लगा आपके ब्लॉग पर .............परिवर्तन का स्वागत है|

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  26. बेहतरीन रचना.....चित्र चयन उम्दा है...

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  27. नदी थी में
    बहती थी चुपचाप
    सिर्फ बहने को
    जीवन मन बैठी थी
    शांत लहरों को
    तुमने छेड़ा जब
    कल कल करती
    आठ्खेलिया करने लगी
    जीवन्तता का आभास पा...
    चंचल हो गई,
    किनारे तोड़
    सभी कुछ भिगोने की जिद में
    उमड़-गुमड हिलारे लेने लगी
    पता नही कौन सा संगीत था ...
    थिरकने लगी

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  28. बहुत सुन्दर ....
    काश सच में पंख मिल जाते
    तो कितना अच्छा होता...
    :-)

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