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25 February 2011

सूरज से मैंने कहा....

सूरज से मैंने कहा 
कल थोड़ी देर से आना 
कुछ देर ठहर कर मुझ से 
आज थोड़ी और बात कर लो 

चाँद भी कुछ देर कर लेगा 
विश्राम तुम्हारे जाने तक
कुछ देर रह लेगा वो भी 
कल तुम्हारे आने तक 

बोला सूरज मुझ से कि 
मैं इंसान नहीं हूँ 
घडी की सुइयों में जो हेर फेर करके 
कभी सोता है और कभी जागता है 

है निश्चित मेरी गति 
समय आने और जाने का 
है नहीं कोई अवसर 
कुछ  कहने और बहाने का

है नहीं विश्राम मुझ को 
निरंतर चलता रहता हूँ 
कहीं उगता हूँ 
कहीं डूबकर चल देता हूँ

आते  हैं बादल,कोहरे 
और अँधेरे मेरी राह में
स्थिर रहकर तुम को 
 मैं रौशनी देता रहता हूँ  

जाने दो ऐ दोस्त!कि 
अब वक़्त हो चला है 
किसी छोर पर भोर 
कर रही होगी इन्तजार  मेरा.

22 comments:

  1. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (26.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  2. अच्छी सीख दी है आपने इस रचना के द्वारा। आभार।

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  3. बहुत सुन्दर रचना..बहुत सार्थक सोच

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  4. है नहीं विश्राम मुझ को
    निरंतर चलता रहता हूँ
    कहीं उगता हूँ
    कहीं डूबकर चल देता हूँ

    बेहतरीन ...सुंदर रचना

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  5. सारगर्भित और सुंदर रचना , शुभकामनायें

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  6. सूरज के अहसान अनगिनत हैं और उनमें नियमितता और निरंतरता की सीख भी है ...बहुत अच्छा लगा सूरज से ये वार्तालाप !

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  7. अच्छा लिखा है
    बधाई

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  8. सूरज मानव नहीं है , उसका अनुशासनबद्ध होना जरुरी भी तो है !

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  9. बोला सूरज मुझ से कि
    मैं इंसान नहीं हूँ
    घडी की सुइयों में जो हेर फेर करके
    कभी सोता है और कभी जागता है
    सार्थक सन्देश दिया इस रचना दुआरा। शुभकामनायें।

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  10. जाने दो ऐ दोस्त!कि
    अब वक़्त हो चला है
    किसी छोर पर भोर
    कर रही होगी इन्तजार मेरा.....


    बहुत खूब ......सुंदर कविता !

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  11. जाने दो ऐ दोस्त!कि
    अब वक़्त हो चला है
    किसी छोर पर भोर
    कर रही होगी इन्तजार मेरा.

    लाजबाब पंक्तियाँ यशवंत जी !

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  12. बहुत सार्थक सोच बहुत खूब ......सुंदर कविता !

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  13. जाने दो ए दोस्त कि अब वक़्त हो चला -बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति...

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  14. बोला सूरज मुझ से कि
    मैं इंसान नहीं हूँ
    घडी की सुइयों में जो हेर फेर करके
    कभी सोता है और कभी जागता है
    baap re suraj ne bhi manushya kee hansi udaa di

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  15. बेहतरीन रचना । बधाई । शुभकामनायें ।

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  16. मैं इंसान नहीं हूँ
    घडी की सुइयों में जो हेर फेर करके
    कभी सोता है और कभी जागता है .....


    वाह..क्या खूब लिखा है आपने।

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  17. जाने दो ऐ दोस्त!कि
    अब वक़्त हो चला है
    किसी छोर पर भोर
    कर रही होगी इन्तजार मेरा.
    behad achchi.

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  18. "आते हैं बादल,कोहरे
    और अँधेरे मेरी राह में
    स्थिर रहकर तुम को
    मैं रौशनी देता रहता हूँ "

    ओरों के लिए जियें इस ओर इशारा कर रही है आपकी ये पंक्तियाँ |
    बहुत सुन्दर रचना है ..

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  19. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
    चर्चा मंच पर लेने के लिए सत्यम जी का विशेष आभार.

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