प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©

इस ब्लॉग पर प्रकाशित अभिव्यक्ति (संदर्भित-संकलित गीत /चित्र /आलेख अथवा निबंध को छोड़ कर) पूर्णत: मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
यदि कहीं प्रकाशित करना चाहें तो yashwant009@gmail.com द्वारा पूर्वानुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें।

09 February 2011

इस बसंत के मौसम में क्यों ...

इस बसंत के मौसम में क्यों 
पतझड़ जैसा लगता है,
और मिलन की ख़ुशी मनाते,
हम को विरहा सा लगता है 

इस बसंत के मौसम में क्यों 
पतझड़ जैसा लगता है

किसी डाल पर कोयल गाती,
स्वप्नों के रंगीले गीत,
हम को भी सुन सुन कुछ होता,
पर कपोत न दीखता है 

इस बसंत के मौसम में क्यों 
पतझड़ जैसा लगता है

दूर हुआ मनमीत मगर,
क्यूँ न यादों से हटता है,
आँखों से झर झर झर आंसू,
सागर सूखा सा लगता है

इस बसंत के मौसम में क्यों 
पतझड़ जैसा लगता है.


[वैसे तो अपनी डायरी में लिखी सभी कविताओं को मैं इस ब्लॉग पर डाल चुका हूँ.13 दिसम्बर 2006 की लिखी इस कविता/गीत को भी आज यहाँ प्रस्तुत कर दिया है.]

14 comments:

  1. दूर हुआ मनमीत मगर,
    क्यूँ न यादों से हटता है,
    आँखों से झर झर झर आंसू,
    सागर सूखा सा लगता है
    यही तो प्रोब्लम है यशवंत जी ! सुन्दर भाव !

    ReplyDelete
  2. यशवंत भाई, बडे बडे शहरों में ऐसी छोटी छोटी घटनाएं होती रहती हैं।

    वैसे कविता बहुत सुंदर बन पडी है। बधाई।

    ---------
    समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
    प्रकृति की सूक्ष्‍म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।

    ReplyDelete
  3. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (10/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

    ReplyDelete
  4. दूर हुआ मनमीत मगर,
    क्यूँ न यादों से हटता है,
    आँखों से जहर झर झर झर आंसू,
    सागर सूखा सा लगता है
    बहुत सुंदर भावों के साथ दिल से लिखी गई रचना....

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर..... मन के गहन भावों की अभिव्यक्ति....

    ReplyDelete
  6. दूर हुआ मनमीत मगर,
    क्यूँ न यादों से हटता है,
    इसका इलाज़ सिर्फ दूरियों के नज़दीकियाँ बन जाने में है !
    अच्छी रचना, बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  7. सुन्दर प्रस्तुति !

    ReplyDelete
  8. बसंत के मौसम में क्यों
    पतझड सा लगता है ...
    बहुत सुन्दर भाव ...
    पर इस पतझड के मौसम से
    खिलेगा इक अंकुर नया

    ReplyDelete
  9. चिंता मत कीजिये
    फ़िर से वो दिन आयेंगें
    और बसंत को बसंत जैसा ही बनायेंगें...
    सुन्दर रचना...

    ReplyDelete
  10. वाह ... बहुत सुन्दर मन को भावुक कर दिया आभार / शुभ कामनाएं

    ReplyDelete
  11. किसी डाल पर कोयल गाती,
    स्वप्नों के रंगीले गीत,
    हम को भी सुन सुन कुछ होता,
    पर कपोत न दीखता है //

    real basant....has gone out

    ReplyDelete
  12. किसी डाल पर कोयल गाती,
    स्वप्नों के रंगीले गीत,
    हम को भी सुन सुन कुछ होता,
    पर कपोत न दीखता है ....
    आपकी कविता में भावों की गहनता व प्रवाह के साथ भाषा का सौन्दर्य भी अपनी दिव्य रूप में उपस्थित है !

    ReplyDelete
+Get Now!