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24 November 2010

ये भी जीवन है

एक तरफ
ऊनी लबादे ओढ़ कर
सर से पैर तक ढके हुए
कृत्रिम गर्मी लेकर
मोटरों में चलने वाले लोग
गलन की ठण्ड का भी
जिन पर
कोई असर दीखता नहीं है

और एक तरफ
वो मासूम
चिथड़ों में लिपटे हुए
थर थर कांपते हुए
नियति का दंश झेलते हुए
जुटे हुए हैं
कूड़े के ढेरों पर
दो वक़्त की
रोटी की तलाश में.

ये भी जीवन है

सच्चाई है
उन्नति के शिखर पर बैठे
मेरे देश की
जिसकी आत्मा बसती है
अशिक्षा और गरीबी में.

12 comments:

  1. bahut sundar tareeke se aapne ek sach ko saamne laya hai ...

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  2. सच्चाई है
    उन्नति के शिखर पर बैठे
    मेरे देश की
    जिसकी आत्मा बसती है
    अशिक्षा और गरीबी में.

    बहुत सुंदर ....सटीक .... सच को समेटे हैं पंक्तियाँ

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  3. सच्चाई है
    उन्नति के शिखर पर बैठे
    मेरे देश की
    जिसकी आत्मा बसती है
    अशिक्षा और गरीबी में.

    यह एक कड़ुवा सच है....जो ऐसे ही फलता-फूलता रहेगा, कूड़े के ढेर पर, सुंदर रचना

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  4. जीवन की विसंगतियों को उकेरती एक संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  5. एक तरफ
    वो मासूम
    चिथड़ों में लिपटे हुए
    थर थर कांपते हुए
    नियति का दंश झेलते हुए
    जुटे हुए हैं
    कूड़े के ढेरों पर
    दो वक़्त की
    रोटी की तलाश में.
    एक दम सटीक ...आज हर तरफ हाहाकार मचा है ....देश की किसको चिंता है ..आमिर आमिर होता जा रहा है और गरीब और गरीब होता जा रहा है, और देश के कर्णधार अपना स्वार्थ सिद्ध करने में जुटे हैं ...सार्थक रचना
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

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  6. ये भी जीवन है...!
    ये विसंगतियाँ कब दूर होंगी...?

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  7. kitna sach... itna ki ankhen bhar aayen...! bahut sunder prastuti!

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  8. ye hamare desh ka jeevan hai.garibi ameeri ka ye santulan iske liye jimmedar hai .shayad kabhi ye jeevan badlega.

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  9. जीवन की सच्चाई को बयाँ करती सुन्दर रचना

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  10. yatharth se sakshatkar karati achhi rachna.

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  11. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  12. संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति.

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