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13 September 2010

ये लेखनी है...

ये लेखनी है
जो चलती रहेगी
तूफानों में औ
आँधियों में
दिल की वीरानियों में
गहरी तनहाइयों में.....
है यही मेरी मित्र
तो क्यों मैं
अकेला
जिंदगी के सफ़र में
सफ़ेद पृष्ठ मेरा..
मैं राही हूँ
चलता जा रहा हूँ
घुप्प अँधेरे में-
तलाशने को सवेरा
मैं कहने देता हूँ
लोगों को लोगों की बातें
दिल को कचोटने वाली
दर्द देने वाली बातें
पर 'मैं'
'मैं' हूँ
ये 'मैं' जानता हूँ
करता वही हूँ
जो 'मैं'
ठानता हूँ
मैं रोशनी हूँ
उन चिरागों के तले
खुशफहमी में खुद को
चिराग समझते हैं जो
मेरी ठोकरों से दुनिया
अक्सर हिलती रहेगी
लेखनी वो लौ है
जो हमेशा जलती रहेगी.


14 comments:

  1. अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने ....

    बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति ! आभार !

    मुस्कुराना चाहते है तो यहाँ आये :-
    (क्या आपने भी कभी ऐसा प्रेमपत्र लिखा है ..)
    (क्या आप के कंप्यूटर में भी ये खराबी है .... )
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com

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  2. आदरणीय गजेन्द्र जी,
    इन पंक्तियों के प्रकाशित होने के चंद सेकेंड्स के भीतर आपकी त्वरित टिप्पणी के बहुत बहुत शुक्रिया.

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  3. .

    यशवंत माथुर जी,
    बहुत सुन्दर रचना । भावनाओं को बखूबी उतरा है शब्दों में आपने। आपकी लेखनी को नमन ।
    शुभकामनाओं सहित,
    दिव्या

    .

    ReplyDelete
  4. मेरी ठोकरों से दुनिया
    अक्सर हिलती रहेगी
    लेखनी वो लौ है
    जो हमेशा जलती रहेगी

    बहुत अच्छा लिखा है आपने..वाकई कलम में ताकत भी है और सबसे अच्छी मित्र भी...

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  5. लेखनी वह लौ है जो जलती रहेगी हमेशा ...
    जलती रहनी चाहिए ...
    जलती रहे ...
    शुभकामनायें ..!

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  6. आदरणीया दिव्या जी,
    एक कहावत है-कडवा बोले मायली,मीठा बोले जग.
    आपका और 'क्रन्तिस्वर' पर मेरे पापा का उद्देश्य भी समाज सुधार है.पर खरा और स्पष्ट सच हमारा समाज सुनना पसंद नहीं करता तो लिख कर ही सही अपनी बात कहनी ज़रूर है.
    ये कविता आप के ब्लॉग पर आप की प्रति टिप्पणियों को पढ़ते समय कब बन गयी और मेरे कंप्यूटर की स्क्रीन पर कब आ गयी पता ही नहीं चला.
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद मेरे ब्लॉग पर आने के लिए.

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  7. आदरणीया वीना जी
    आप हमेशा मेरा उत्साह बढाती हैं,धन्यवाद.'वीणा के सुर' पर आप की नयी रचना का इंतज़ार है.

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  8. आदरणीया वाणी जी,
    आप की उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.

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  9. लेखनी पर बहुत बढ़िया रचना ... बधाई

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  10. पर "मैं" मैं हूँ
    ये मैं जानता हूँ !
    करता वही
    जो मैं ठानता हूँ !
    बहुत खूब, मेरे मन की बात कही आपने ! ये "मैं" सरीफ भी है और खतरनाक भी !

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  11. आदरणीय मिश्र जी एवं गोंदियाल जी,
    आप की टिप्पणियों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.

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  12. मेरी ठोकरों से दुनिया हमेशा हिलती रहेगी
    लेखनी वो लौ है जो हमेशा जलती रहेगी



    बहुत बढ़िया रचना


    महक

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  13. बढ़िया रचना, बधाई.


    हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!

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  14. महक जी,उड़न तश्तरी जी,
    आप का बहुत बहुत धन्यवाद मेरे ब्लॉग पर आने के लिए.
    हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं

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